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समोसा रानी – ब्रिटेन से कामयाबी की एक असाधारण कहानी
Parveen Warsi (परवीन वारसी) ने डर्बी में अपने घर से समोसे बनाना और बेचना शुरू किया। आज समोसा रानी के 4 कारखानों में 1300 लोग काम करते हैं। उनकी कंपनी S&A Foods का सालाना कारोबार $10 करोड़ से ज्यादा है और अब तो उन्होंने सुपर मार्केट को मलेशियन, थाई और चाइनीस खाना सप्लाई करने के अपने उत्पादों की श्रृंखला को और बढ़ा दिया है।
अपने घर की रसोई में इतने छोटे ढंग से शुरुआत करके इतना बड़ा कारोबार संभालने की चुनौती तक वह कैसे उठे उठी? कभी-कभी अज्ञानता वाकई वरदान हो सकती है। अगर उन्हें पता होता कि यह कितना कठिन होगा तो उन्होंने ऐसा करना शुरू ही नहीं किया होता।
उनकी यात्रा में किस ने उनकी सबसे अधिक मदद की?
उनके परिवार ने। उनके पति हमेशा मदद करते रहे हैं। उनके ग्राहक काफी मददगार रहे हैं। उदाहरण के लिए वह खानपान में सफाई, क्वालिटी कंट्रोल वगैरह के बारे में कुछ नहीं जानती थी, और उनको उनके ग्राहकों ने मदद की।
भारतीय जड़ें: हर यात्रा की अपनी जड़ें या मूल स्त्रोत होते हैं। परवीन की जड़ें भारतीय हैं। उनके परिवार के अनुभव और भारतीय संस्कृति के कई पहलू उनकी व्यापारिक दृष्टि और भविष्य की योजनाओं को प्रभावित करते हैं। वह एक ऐसे परिवार में बड़ी हुई जो कुछ मायनों में पारंपरिक तौर तरीकों का सम्मान करता था और साथ ही बने बनाए सांचों को तोड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करता था। सिविल इंजीनियर के रूप में उनके पिता के काम का मतलब था कि उनका परिवार अक्सर ही एक से दूसरी जगह जाता रहता था। लगातार जगह बदलते रहने से परवीन को नए-नए दोस्त बनाने और यह सीखने का अवसर मिला कि अलग-अलग संस्कृतियों के लोगों के साथ कैसे रहा जाता है। वह अलग-अलग जगह देखना, अलग-अलग खाना चखना और अलग-अलग रीति-रिवाजों की जानकारी हासिल करना पसंद करती थी। लगातार बदलाव उनके लिए सामान्य बात थी। उन्होंने जीवन को फिर से शुरू करना और इसका आनंद लेना सीखा।
माता-पिता से प्रेरणा: उनके पिता अक्सर अपने काम के बारे में बातें करते थे। वह मेहनती थे। उच्च गुणवत्ता मानकों का ध्यान रखते थे और अपने उसूलों पर दृढ़ विश्वास करते थे। परवीन याद करती हैं कि वह उनके लिए कितने प्रेरणादाई थे। उन्हें यह यकीन है कि एक नेतृत्वकर्ता के रूप में उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह खुद अपने मूल्यों के अनुसार जीवन बितायें।
अपनी मां और दादी से उन्होंने यह सीखा कि दूसरे लोगों को भावनात्मक सहायता देने से कितने लंबे समय तक लाभ मिलता है। “दूसरे लोगों की जरूरतों और तक़ाज़ों को समझने के लिए समय निकालना” यह एक ऐसी चीज है, जो आज वह अपने और ग्राहकों के साथ करती हैं।
दुखी समोसे: 1986 में 10 वर्ष से इंग्लैंड में रह रही परवीन ने अपनी लोकल सुपरमार्केट में पहली बार एक समोसा देखा। उत्सुकतावश उन्होंने इसे चखा। वह बेहद बेस्वाद था। बिल्कुल फीका, बोरिंग और भारतीय खाने का बिल्कुल उल्टा। ज़रा भी स्वाद नहीं था। परवीन अपने डॉक्टर पति के साथ इंग्लैंड आई थी जो उच्च शिक्षा हासिल कर रहे थे। उनके साथ छोटा बच्चा भी था। परवीन ने खुद को स्थापित किया। उन्होंने अंग्रेजी सीखी। वहां के तौर-तरीकों और परिवारों से चकित हुई और स्वाद भरी सब्जियों के अभाव से उन्हें बहुत हैरत हुई। वहां बस आलू और गोभी मिलते थे। 1986 तक उनके दो बेटे बड़े होने लगे थे। वह कहती हैं, घर की सफाई भला कोई कितनी करेगा। वह बोर होने लगी थी। इन दुखी समोसा को देखते हुए उन्होंने तय किया कि लोग भारतीय व्यंजन चाहते हैं और जितना वह जानती थी उसके मुताबिक लोग अच्छे व्यंजन चाहते थे, “किसी न किसी को लोगों तक इसे लेन की ज़िम्मेदारी लेनी होगी, तो मैं क्यों नहीं?”
कुटीर उद्योग से राष्ट्रीय उद्योगपति तक: उद्योगपति के रूप में परवीन का करियर रसोई से शुरू हुआ। उन्होंने खुद अपने व्यंजन आज़माये। एक स्थनीय टेक-अवे रेस्तरां को अपने भारतीय स्नैक्स बेचने के लिए तैयार किया। उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। तो उन्होंने खुद को एक कुटीर उद्योग में बदल दिया।
मदद के लिए 5 और भारतीय महिलाएं: जल्दी ही वे स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए लगातार काम में जुटी रहने लगी। इस समय परवीन के लिए यह आसान होता कि वह अपने पैर मजबूती से जमीन पर टिकाए रखें। तब उनकी आंखें कभी आसमान की ओर नहीं गई होती। अपनी आंखें ऊपर की ओर ले जाते हुए उन्होंने सुपरमार्केट के सेल्फों पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि इससे पूरे देश में वितरण हो सकता था। अपने स्वादिष्ट व्यंजन को पूरे देश में ले जाते हुए उन्होंने स्थानीय टेक-अवे रेस्तरां को अपने उत्पादों और उत्पादन की क्षमता के लिए परीक्षण के तौर पर देखा। उनका मानना है कि आसमान की ओर देखने से आपके परिदृश्य में संभावनाएं उभर आती हैं।
तो इस तरह समोसा रानी एक छोटे से समोसे को लेकर एक बड़ी उद्योगपति बनी, सिर्फ उनकी लगन और मेहनत के वजह से।
— Source: Be a Winner Everytime